उत्तर प्रदेश के झांसी ज़िले के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में शुक्रवार रात दर्दनाक हादसे में 10 नवजातों की मौत हो गई। यह हादसा मेडिकल कॉलेज के नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (एनआईसीयू) में रात करीब साढ़े 10 बजे हुआ। इस आग में 16 नवजात घायल हो गए हैं।
घटना के समय देशभर में नवजात शिशु सप्ताह (15 से 21 नवंबर) मनाया जा रहा था, जिससे यह हादसा स्वास्थ्य तंत्र की लापरवाही और कमजोर सुरक्षा व्यवस्थाओं को उजागर करता है।
कॉलेज के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (सीएमएस) डॉ. सचिन महोर ने बताया कि "शॉर्ट सर्किट के कारण एनआईसीयू वार्ड में आग लगी। उस समय वार्ड में 49 नवजात भर्ती थे।" हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि आग बुझाने की कोशिश तुरंत की गई, लेकिन 10 मासूमों की जान नहीं बचाई जा सकी।
सुरक्षा में चूक का नतीजा ?
मेडिकल कॉलेज जैसे बड़े संस्थानों में इस तरह की घटनाएं यह दिखाती हैं कि सुरक्षा मानकों को लेकर प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग कितना लापरवाह है। एनआईसीयू जैसे संवेदनशील वार्ड में शॉर्ट सर्किट से आग लगना न केवल तकनीकी लापरवाही की ओर इशारा करता है, बल्कि वहां तैनात कर्मचारियों की सतर्कता पर भी सवाल खड़े करता है।
सरकार और तंत्र की जिम्मेदारी पर सवाल?
इस हादसे ने न केवल अस्पताल प्रबंधन बल्कि सरकार की भी जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। हर साल अस्पतालों में आग लगने या अन्य हादसों में सैकड़ों जानें जाती हैं, लेकिन सुधार की कोशिशें कागजों तक ही सीमित रहती हैं। झांसी की इस घटना ने फिर दिखा दिया कि स्वास्थ्य तंत्र सुरक्षा सुनिश्चित करने में कितना विफल है।
मुआवजे और जांच के आदेश
प्रशासन ने घटना की जांच के आदेश दिए हैं और पीड़ित परिवारों को मुआवजा देने की घोषणा की है। लेकिन क्या यह मुआवजा उन परिवारों के दर्द को कम कर पाएगा, जिन्होंने अपने नवजातों को खो दिया?
आवश्यक है कि इस घटना से सबक लेते हुए सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं और सुरक्षा मानकों को दुरुस्त करे, ताकि भविष्य में किसी परिवार को ऐसी त्रासदी का सामना न करना पड़े।